सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नारदा घोटाला मामले में आरोपी टीएमसी नेताओं को नजरबंद करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया


 सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नारदा घोटाला मामले में आरोपी टीएमसी नेताओं को नजरबंद करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री के आचरण के आधार पर हम किसी अन्य की निजी स्वतंत्रता नहीं छीन सकते। 

सनद रहे कि टीएमसी के चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई दफ्तर के सामने धरने पर बैठ गई थी, जबकि राज्य के कानून मंत्री मलोय घटक अदालत परिसर में जम गए थे।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस बीआर गवई ने टीएमसी के नेताओं को नजरबंद करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से तो इनकार कर दिया लेकिन यह जरूर कहा कि हम मुख्यमंत्री और कानून मंत्री के आचरण को सही नहीं ठहरा सकते। पीठ ने कहा कि सीबीआई, कानून के शासन को धता बताने वालों और कानून-व्यवस्था खराब करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। पीठ ने कहा कि कोई भी व्यक्ति कानून से बढ़कर नहीं है।


पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ पहले से ही इस मामले पर गौर कर रही है, ऐसे में फिलहाल दखल देने का कोई कारण नहीं बनता। इसके बाद सीबीआई ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली अपनी याचिका वापस ले ली। इससे पहले सुनवाई के दौरान पीठ ने सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सवाल किया कि मुख्यमंत्री व कानून मंत्री के धरने पर बैठने का खामियाजा आरोपियों को क्यों भुगतना चाहिए? 


पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा धरने पर बैठकर सीबीआई पर दबाव बनाने को हम कतई सही नहीं ठहरा सकते, लेकिन क्या इस आधार पर हम नागरिकों की स्वतंत्रता छीन सकते हैं? पीठ ने कहा-हम ऐसा नहीं कर सकते।


सॉलिसिटर जनरल ने पीठ से यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल में उत्पन्न स्थिति बेहद परेशान करने करने वाली है। वहां केंद्रीय जांच एजेंसी और न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद सीबीआई ने अपनी याचिका वापस ले ली और इन सभी मुद्दों को हाईकोर्ट के समक्ष उठाने की बात कही।


इसलिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी जांच एजेंसी

कोलकाता हाईकोर्ट ने 21 मई को नारदा घोटाला मामले के आरोपी टीएमसी के चार नेताओं को न्यायिक हिरासत में जेल भेजने की बजाए नजरबंद करने और मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। गत 17 मई को सीबीआई ने टीएमसी नेता फरहाद हकीम, सुब्रतो मुखर्जी, मदन मित्रा और शोभन चटर्जी को नारदा घोटाला मामले में गिरफ्तार किया था।


क्या है नारदा घोटाला

साल 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप का खुलासा किया गया था। ऐसा दावा किया गया था कि ये टेप साल 2014 में रिकॉर्ड किए गए थे। इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक और कोलकाता के मेयर को कथित रूप से एक काल्पनिक कंपनी के प्रतिनिधियों से रकम लेते दिखाया गया था। यह स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज पोर्टल के सीईओ मैथ्यू सैमुअल ने किया था। साल 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने इन टेप की जांच का आदेश सीबीआई को दिया था।