आयुष्मान योजना में अभी भी चंद मरीजों को ही इलाज मिल पा रहा है। गोल्डन कार्ड नहीं होने से मुश्किलें आ रही हैं। ग्रामीण इलाके की स्थिति ज्यादा गंभीर है। इटौंजा के अटेसुआ निवासी जरीना का पैर टूट गया। उनके पास गोल्डन कार्ड नहीं है। वह गोल्डन कार्ड के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गई, लेकिन अभी तक बन नहीं पाया है।
ऐसे में वह अस्पताल जाती हैं तो आयुष्मान मित्र गोल्डन कार्ड की मांग करते हैं। कार्ड नहीं होने से इलाज नहीं मिल पा रहा है, जबकि शासनादेश है कि लाभार्थी का नाम सूची में है तो उसका इलाज किया जाए। इसके बाद भी जरीना को इलाज नहीं मिल पा रहा है। जरीना की तरह ही रमेश मौर्या, गोवर्धन प्रसाद भी कार्ड के इंतजार में इलाज नहीं करा पा रहे हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य बीकेटी के अधीक्षक डॉ. विनीत कुमार भार्गव ने बताया कि इटौंजा, बीकेटी में 18608 परिवारों के 90 हजार लाभार्थियों के गोल्डेन कार्ड बनने हैं। अभी तक बीकेटी में 5900 गोल्डन कार्ड बने हैं। इसी तरह इटौंजा में 4500 गोल्डन कार्ड ही बन सके हैं।
ऐसे में वह अस्पताल जाती हैं तो आयुष्मान मित्र गोल्डन कार्ड की मांग करते हैं। कार्ड नहीं होने से इलाज नहीं मिल पा रहा है, जबकि शासनादेश है कि लाभार्थी का नाम सूची में है तो उसका इलाज किया जाए। इसके बाद भी जरीना को इलाज नहीं मिल पा रहा है। जरीना की तरह ही रमेश मौर्या, गोवर्धन प्रसाद भी कार्ड के इंतजार में इलाज नहीं करा पा रहे हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य बीकेटी के अधीक्षक डॉ. विनीत कुमार भार्गव ने बताया कि इटौंजा, बीकेटी में 18608 परिवारों के 90 हजार लाभार्थियों के गोल्डेन कार्ड बनने हैं। अभी तक बीकेटी में 5900 गोल्डन कार्ड बने हैं। इसी तरह इटौंजा में 4500 गोल्डन कार्ड ही बन सके हैं।
केजीएमयू में सर्जरी से बेहतर हुई रोशनी
सड़क हादसे में घायल होने सीतापुर निवासी मनोज की दाईं आंख के नीचे की हड्डी (आर्बिट फ्लोर) टूट गई थी। ऐसे में उन्हें एक ही सामान डबल दिखाई देता था। निजी अस्पताल के डॉक्टरों ने इंप्लांट के जरिये हड्डी जोड़ने की बात कही। मरीज आयुष्मान कार्डधारक था।
परिवारीजन उसे लेकर 16 सितंबर को केजीएमयू के ओरल एंड मैक्सिलो फेशियल सर्जरी विभाग पहुंचे। यहां विभागाध्यक्ष डॉ. शादाब मोहम्मद ने सर्जरी की। उसकी क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को रिपेयर करके कार्टिलेज (ऊतकों का समूह) निकाला। फिर उसे ऑर्बिट फ्लोर पर लाकर फिक्स कर दिया।
अब मरीज की आंखें फिट हो गई है। उसकी रोशनी भी ठीक है। डॉ. शादाब ने बताया कि यह ऑर्बिट फ्लोर रीकंस्ट्रक्शन बाय इअर कार्टिलेज्य तकनीक से संभव हुआ। केजीएमयू में इस तकनीक से पहली बार सर्जरी की गई है।
परिवारीजन उसे लेकर 16 सितंबर को केजीएमयू के ओरल एंड मैक्सिलो फेशियल सर्जरी विभाग पहुंचे। यहां विभागाध्यक्ष डॉ. शादाब मोहम्मद ने सर्जरी की। उसकी क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को रिपेयर करके कार्टिलेज (ऊतकों का समूह) निकाला। फिर उसे ऑर्बिट फ्लोर पर लाकर फिक्स कर दिया।
अब मरीज की आंखें फिट हो गई है। उसकी रोशनी भी ठीक है। डॉ. शादाब ने बताया कि यह ऑर्बिट फ्लोर रीकंस्ट्रक्शन बाय इअर कार्टिलेज्य तकनीक से संभव हुआ। केजीएमयू में इस तकनीक से पहली बार सर्जरी की गई है।
यहां करें शिकायत, दें सुझाव
अब भी लाभार्थियों को विभिन्न तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए अमर उजाला ने एक अभियान शुरू की है। इसका उद्देश्य योजना में आ रही समस्याओं को सामने लाना और उसके निराकरण की दिशा में काम करना है। आपकी कोई शिकायत, सुझाव हो तो हमें बताएं।
व्हाट्सअप - 8859108092 (सुबह 11 बजे से दोपहर तीन बजे तक)
मेल - chandrab@knp. amarujala.com
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