अब यह जरूरी हो गया कि पाकिस्तान को प्रभावी बनाने वाले पहलुओं को निष्प्रभावी किया जाए। इसे संभव बनाए बिना कोई भी सरकार कश्मीर में सौहार्द कायम नहीं कर सकती।
[ विवेक काटजू ]: बीते कुछ दिनों में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा फिर सुर्खियों में आया है। इसकी शुरुआत राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के उस बयान से हुई जिसमें उन्होंने कहा कि हुर्रियत नेता बातचीत के लिए तैयार नहीं। उनके बयान के तुरंत बाद हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि उनका समूह हमेशा सार्थक वार्ता के लिए तैयार रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि अतीत में भी हुर्रियत भारत और पाकिस्तान के साथ सक्रिय रही है।
कश्मीर में खूनखराबा रोकने के लिए राजनीतिक सक्रियता जरूरी
इस संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जून में जब शंघाई सहयोग सम्मेलन में भाग लेने के लिए बिश्केक जा रहे थे तो उससे पहले फारूक ने कहा था मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को एक दूसरे के साथ सक्रियता बढ़ानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि 'कश्मीर में आगे बढ़ने और दर्दनाक खूनखराबे के दौर को खत्म करने के लिए राजनीतिक सक्रियता ही सबसे प्रभावी तरीका है।'
बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले हैं
मलिक और मीरवाइज के बयानों के बाद भाजपा के एक नेता ने स्पष्ट किया कि ऐसे लोगों के लिए बातचीत के दरवाजे हमेशा खुले हुए हैं जो भारतीय संविधान में आस्था रखते हों। भाजपा की राज्य इकाई ने और कड़ा रुख अपनाते हुए हुर्रियत से पूछा कि क्या वह सार्वजनिक रूप से जम्मू-कश्मीर को गैर-विवादित क्षेत्र मानते हुए उसे भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देगी। यह एक अहम शर्त है, क्योंकि राज्य की स्थिति को विवादित मानने में हुर्रियत पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाती है।
वार्ता से हल हो जम्मू-कश्मीर मुद्दे का समाधान
ऐसे में हम जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से उम्मीद कर सकते हैं कि वे वार्ता के मुद्दे पर अपना पुराना रुख दोहराएंगे। पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस दोनों ने वार्ता की मांग की और कहा कि सभी पक्षों के बीच वार्ता के माध्यम से ही जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का समाधान निकल सकता है। नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ता शुरू होने की इच्छा दोहराई। ऐसा करते हुए उमर अब्दुल्ला इस मसले पर राज्य में मुख्यधारा के दलों का रुख ही जाहिर कर रहे थे।
गृहमंत्री अमित शाह का पहला जम्मू-कश्मीर दौरा
इस मसले पर सभी पक्षों की ओर से हुई बयानबाजी के कुछ दिन बाद बतौर गृहमंत्री अमित शाह ने अपना पहला जम्मू-कश्मीर दौरा किया। उन्होंने कई आला अधिकारियों के साथ बातचीत की। इनमें राज्य की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालने से लेकर विकास गतिविधियों का काम देख रहे अधिकारी शामिल थे। शाह ने उनसे अलग-अलग बातचीत की। सुरक्षा से जुड़े मसलों को लेकर उनका दो-टूक संदेश था कि आतंक और आतंकियों के साथ बिल्कुल नरमी न बरती जाए। आतंक को मिलने वाली वित्तीय मदद पर भी पूरी नकेल कसी जाए।
कानून-व्यवस्था पर जोर
शाह ने कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू करने पर जोर देने की बात कही। अपने रुख को लेकर जनता में संदेश देने के लिए शाह इंस्पेक्टर अरशद खान के घर भी गए। अरशद खान ने अनंतनाग में आतंकियों से संघर्ष करते हुए असाधारण साहस का परिचय दिया था। शाह ने कहा कि उनकी शहादत हमेशा याद रहेगी। उन्होंने कश्मीर घाटी में रहने वाले गुज्जर और बकरावल समुदाय के लोगों से बातचीत की। शाह ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि तमाम अन्य राज्यों में सिरे चढ़ चुकीं विकास की कई योजनाएं जम्मू-कश्मीर में भी तेज रफ्तार से आगे बढ़नी चाहिए।
शाह की हुर्रियत से वार्ता नहीं
स्पष्ट है कि गृह मंत्री ने हुर्रियत से बातचीत की कोई मंशा नहीं दिखाई। इससे उन अटकलों पर विराम लग जाना चाहिए कि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर के हालात संभालने में अपनी नीति बदलने जा रही है। खासतौर से सत्यपाल मलिक द्वारा हुर्रियत को लेकर दिए बयान से कुछ गफलत अवश्य पैदा हो गई थी। आखिर मलिक ने यह क्यों किया? क्या वह केवल हुर्रियत नेताओं के बयान पर ही प्रतिक्रिया दे रहे थे? तथ्य यही है कि कोई भी सरकार देश में तमाम चैनलों के माध्यम से विभिन्न समूहों के संपर्क में होती है। कुछ मामलों में खुफिया एजेंसियां भी इनमें शामिल होती हैं। इसमें कुछ गलत नहीं। क्या कुछ चैनलों के माध्यम से हुर्रियत को कोई संदेश दिया गया जिसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं?
कश्मीर के मामलों में पाकिस्तान
बहरहाल मलिक के बयान के बाद मीरवाइज उमर फारूक और राज्य में मुख्यधारा के दलों द्वारा वार्ता में पाकिस्तान को पक्ष बनाने का क्या निहितार्थ है? यह एक और मिसाल है कि राज्य के मामलों में पाकिस्तान कैसे अपनी पैठ बढ़ा रहा है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि सरकारों का रवैया ढुलमुल रहा और राज्य से जुड़े बुनियादी सिद्धांतों को लेकर अतीत में सरकारें भ्रम का शिकार रहीं। सरकार की इन नीतियों से ही राज्य के मसलों का समाधान और पाकिस्तान की काट होनी चाहिए थी। मगर अफसोस की बात कि पिछली सरकारों ने इसकी अनदेखी की।
जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का अभिन्न अंग है
भले ही भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल हो, लेकिन यह भारतीय संघ का अभिन्न अंग है। इस तथ्य को देखते हुए राज्य के शासन-संचालन या राज्य के केंद्र से संबंधों को लेकर किसी भी अन्य देश को कभी भी पक्ष नहीं बनाया जा सकता। ये मुद्दे भारत के आंतरिक मामलों के दायरे में ही आते हैं। राज्य का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है। शिमला समझौते के तहत भारत इस मुद्दे को शांतिपूर्वक और बातचीत के जरिये सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है। यही इस मुद्दे का बाहरी पहलू है और यहीं पाकिस्तान दाखिल होता है। इस या किसी अन्य मुद्दे को लेकर द्विपक्षीय बातचीत तब तक नहीं होनी चाहिए जब तक कि पाकिस्तान आतंक की अपनी नीति नहीं छोड़ देता।
कश्मीर में पाकिस्तानी खौफ
वास्तव में होना यही चाहिए था कि भारत ऐसी स्थितियां बनने ही नहीं देता जिसमें पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर में इतनी पैठ बनाने की गुंजाइश मिल जाती। पाकिस्तानी हस्तक्षेप को रोकने के लिए भारत को हरसंभव प्रयास करने चाहिए थे। इसके लिए चाहे विचारधारा का सहारा लिया जाता या जम्मू-कश्मीर के लोगों को हथियारबंद प्रशिक्षण देने से लेकर घुसपैठिये भेजना या राज्य के लोगों में पाकिस्तानी खौफ पैदा करना कि उससे उन्हें कितना नुकसान पहुंच सकता है। मगर भारत यह सब करने में नाकाम रहा। यह एक कड़वी और तल्ख अनुभूति जरूर है, लेकिन यही सच है।
पाक को निष्प्रभावी किए बिना कश्मीर में सौहार्द कायम नहीं रहेगा
अब यह जरूरी हो गया कि पाकिस्तान को प्रभावी बनाने वाले पहलुओं को निष्प्रभावी किया जाए। इसे संभव बनाए बिना कोई भी सरकार कश्मीर में सौहार्द कायम नहीं कर सकती। बेहतर शासन से लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में सुधार एक सही मकसद है और इससे जनसामान्य में लोकप्रियता अवश्य बढ़ेगी, लेकिन केवल यही कश्मीर घाटी में स्थायी शांति और स्थायित्व लाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। आतंक का रास्ता पकड़ने वाले सरकार से सख्ती की ही उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए पाकिस्तान जाने वाले युवाओं पर अंकुश लगाया जाए। पाकिस्तान से निपटने में यह प्रभावी उपाय साबित होगा। भारत को मुख्य रूप से इसी पर ध्यान केंद्रित करना होगा।